Header Ads Widget

धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का!

यह कहावत विजय रामलीला कमेटी की वर्तमान परिस्थितियों पर पूरी तरह चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि माननीय अदालत द्वारा एक की गई शिकायत पर गत दिनों विजय रामलीला कमेटी द्वारा किए गए निर्माण को अतिक्रमण की श्रेणी में रखते हुए नगर निगम से कार्रवाई करने के आदेश पारित किए थे। जिसके चलते नगर निगम ने हाल ही में 12 मई को खानापूर्ति करते हुए पीछे की तरफ का एक कमरा ध्वस्त भी किया था।

अब संस्था के पदाधिकारियों द्वारा एक फेसबुक पेज बनाते हुए राम की सरकार से राम के द्वार को बचाने की गुहार लगाई है और कि जिसमें जनता को भागीदारी निभाने का भी आग्रह किया है। लोगों का मानना है कि वर्तमान सरकार और प्रशासन दोनों ने ही 70 वर्ष पुरानी संस्था को मूर्छित कर किस्मत के भरोसे छोड़ दिया है। हम यह बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि प्रशासन के द्वारा ही भिन्न भिन्न समय पर इस संस्था को निर्माण और जीर्णोद्धार के लिए भारी रकम दी जाती रही है। क्या सरकारी खजाने के उस पैसे को देते वक्त प्रशासन को यह नहीं मालूम था कि यह संस्था सरकारी जमीन पर अवैध रूप से काबिज है? क्या मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पूर्व मुख्य संसदीय सचिव श्रीमती सीमा त्रिखा को उक्त संस्था को पैसे बांटते समय भी यह नहीं मालूम था? क्या पूर्व की सरकारों में जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को भी यह ज्ञान नहीं था कि वे जिस संस्था पर जनता का पैसा दोनों हाथों से लुटवाए जा रहे हैं वह दरअसल अवैध रूप से काबिज है सरकारी जमीन पर? क्यों संस्था ने अभी तक खर्च किए गए पैसों का हिसाब विकास शाखा को नहीं दिया है? क्यों विकास शाखा द्वारा आवंटित किए गए उन पैसों का कोई हिसाब नहीं लिया गया अथवा कार्रवाई की गई?

शहर के बुद्धिजीवियों और जागरूक नागरिकों का मानना है कि सरकार में जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे नेताओं के लिए भी इस संस्था का मुद्दा इधर कुआं उधर खाई जैसा बन कर रह गया है क्योंकि यदि बचाव करते हैं तो माननीय अदालत की अवमानना होती है और यदि वे इस पर कार्रवाई करवाते हैं तो जिन संस्थाओं की मदद वे करते चले आ रहे हैं उन पर भी कार्रवाई होना तय है। जनता का यह भी कहना है कि भले ही भाजपा सरकारें हमें न्याय दिलवाने के लिए चलाए जा रहे विभिन्न पोर्टल जैसे कि आरटीआई, मुख्यमंत्री का जनता दरबार, सीएम विंडो, ग्रीवेंस कमेटी का दम भरते नहीं थकते लेकिन सच्चाई किसी से छिपी नहीं कि इन पोर्टलों पर भी हमें कोई राहत मिलना तो दूर उल्टा नुकसान ही झेलना पड़ रहा है।

Post a Comment

0 Comments