नागपुर, 27 जनवरी, 2024 : “प्रभु परमात्मा को जिस किसी भी नाम से पुकारा जायें पर ब्रह्मज्ञान द्वारा इसके दर्शन करने से ही वास्तविक भक्ति का आरंभ होता है |” यह दिव्य प्रवचन निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज द्वारा महाराष्ट्र के 57वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के प्रथम दिन उपस्थित श्रद्धालुजनों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए | सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी के पावन सान्निध्य में नागपुर के मिहान एसईजेड़ इलाके में आयोजित इस तीन दिवसीय सन्त समागम में देश-विदेश से लाखों का जन परिवार सम्मिलित हुआ और सभी ने सतगुरु के दिव्य दर्शन एवं पावन प्रवचनों का आनंद प्राप्त किया |
सतगुरु माता जी ने अपने आशीर्वचनों में कहा कि निराकार परमात्मा जो सर्वत्र समाया हुआ है, समूचे ब्रह्माण्ड का कण कण जिसमें निहित है, जो स्थिर, अनंत एवं सर्वव्यापी है ऐसे परमात्मा का बोध होने के उपरांत जब हम इससे भावरुप में इकमिक हो जाते हैं, तब हमारे अंदर मानवीय गुणों का स्वत: ही समावेश हो जाता है | तभी हम समस्त संसार एक परिवार की भावना से युक्त होकर जीवन जीते चले जाते हैं |
सतगुरु माता जी ने आगे समझाया कि हमारी जीव आत्मा इस परमपिता परमात्मा का ही अंश है जो इससे उभरकर अंत में इसी में समाहित हो जाती है | ब्रह्मानुभूति से हमें यह जब बोध हो जाता है कि हमारी वास्तविक पहचान यह शरीर नहीं अपितु हमारी आत्मा है जो इस परमात्मा से ही उत्पन्न हुई है | तो हमारी मुक्ती का मार्ग सहज ही सुलभ हो जाता
है |
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